Wednesday, April 14, 2010

बाल पत्रिका "आईना' आपके सामने


हम फिर आपके सामने आये हैं बाल पत्रिका "आईना" नन्ही तूलिकाके नए अंक के साथ .एकबार फिर बच्चे आपसे आशीर्वाद के पात्र हैं,क्योंकि बच्चे कितनी अच्छी सोच रख रहे हैं ,काबिल-अ-तारीफ की बात है....
यह अंक लोक कथा विशेषांक है जिसमें अनेक देशो की लोक कथाएं राखी गयी है ,बच्चों ने अपना पेंटिंग,कार्टून,कविता इवेनयहाँ तक की अपने आस-पास की न्यूज़ तक दिए हैं।
पत्रिका की संपादक स्वयम्बरा बहुत ही बढ़िया बच्चों की मानसिकता को समझकर उनकी बातों को रख रही हैं.

Monday, March 15, 2010

एक बच्ची की भावनाएं


मै तो कहूँगा की आप लोगों को एक बार बिहार के गावों में अवश्य आना चाहिए. बिहार में विकास हो रहा है ,ये तो जग जाहिर है.मगर मैं आपको भोजपुर के उन सुदूर इलाकों में ले जा रहा हूँ जहाँ बच्चों कीकिलकारियां ,गोली-बारूदों की आवाजों में दब सी जाती थी ......किन्तु आज वहां के बच्चे अपनी भावनाओं को "आईना"नन्हीं तूलिका के मंच से सबके सामने रख रहे हैं.साभार बाल पत्रिका "आईना नन्हीं तूलिका'"

Tuesday, March 9, 2010

प्रबंध संपादक संजय शाश्वत की कलम से

हमारी कोशिश है कि "आईना"कीपन्नों को परत-दर-परत खोलें ,तो-----लिजीय एक और पन्ना--प्रबंध संपादक संजयं शाश्वत की भावनाएं...आप पढ़ें ......

मासिक निकलेगी "आईना" बाल पत्रिका




आरा,बिहार से प्रकाशित होने वाली बाल पत्रिका "आईना"का मार्च २०१० से मंथली प्रकाशन शुरू हो गया. बाल पत्रिकाओं की भीड़ में देश की एक मात्र बाल पत्रिका जिसमें बच्चे पत्रकार, कहानीकार,चित्रकार,कवि,कार्टूनिस्ट ,विचारक आदि हैं .इस पत्रिका में कोई भी बच्चा लिख सकता है। बच्चे राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय घटनाओं पर बेझिझक होकर लिख सकते हैं ,मगर हिंदी में। यदि कोई सालाना ग्राहक बनना चाहता है तो हमें अवश्य लिखें .आप "आईना" के अन्दर झाकने की कोशिश करें--

Tuesday, January 5, 2010

पटना में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए संजय शाश्वत

Sunday, November 22, 2009

"आईना" का नया अंक पर सम्पादकीय


'यवनिका ' संस्था के पहल से निकलने वाली बाल पत्रिका का नया अंक बाज़ार में आ चुका है। बिहार के आरा जैसे कस्बाई शहर से प्रकाशित इस बाल पत्रिका में बच्चे ही लिखते हैं ,बच्चों का ही सारा कुछ किया रहता है ,सिर्फ़ संपादन छोड़कर। एक नज़र सम्पादकीय पर----
..........तो दोस्तों ,"आईना" का नया अंक अब आपके सुकोमल हाथों में है ,यह संयुतांक है ,निश्चित तौर पर आर्थिक पक्ष ने हमें प्रभावित किया ,पर हम धीरे ही सही ,देर से ही सही ,आपके समक्ष हैं .इस एक वर्ष में पत्रिका ने कुछ बच्चों को कुछ कर गुजरने के लिया आंदोलित ज़रूर किया ,पर अभिभावकों की अभिरुचि नहीं रही .शिक्षकों ने भी समर्थन नहीं ही दिखाया ,तभी तो बच्चे स्कूल से छुपकर पत्रिका में लिखना शुरू किए.धीरे ही सही बाल रचनाकारों की संख्या में लगातार वृद्धि ही है .बस बच्चों जो भी तुम सोचों,दुनिया को जैसे भी देखो .... हमें बस लिख भेजो या मेल कर दिया करो॥
बाल महोत्सव का समय है और इस बार हमने बच्चों की सांस्कृतिक गतिविधिओं को ही जगह दिया है .इसलिय यह अंक "बाल महोत्सव" विशेषांक है।....... तो मेरे नन्हे कहानीकारों,बाल कवियों,चित्रकारों आप अपनी रचना को जितना जल्दी हो सके भेज डालो .... जल्द ही हम आ रहे हैं "आईना" को नए तेवर में लेकर ...बाय-बाय