Sunday, November 22, 2009

"आईना" का नया अंक पर सम्पादकीय


'यवनिका ' संस्था के पहल से निकलने वाली बाल पत्रिका का नया अंक बाज़ार में आ चुका है। बिहार के आरा जैसे कस्बाई शहर से प्रकाशित इस बाल पत्रिका में बच्चे ही लिखते हैं ,बच्चों का ही सारा कुछ किया रहता है ,सिर्फ़ संपादन छोड़कर। एक नज़र सम्पादकीय पर----
..........तो दोस्तों ,"आईना" का नया अंक अब आपके सुकोमल हाथों में है ,यह संयुतांक है ,निश्चित तौर पर आर्थिक पक्ष ने हमें प्रभावित किया ,पर हम धीरे ही सही ,देर से ही सही ,आपके समक्ष हैं .इस एक वर्ष में पत्रिका ने कुछ बच्चों को कुछ कर गुजरने के लिया आंदोलित ज़रूर किया ,पर अभिभावकों की अभिरुचि नहीं रही .शिक्षकों ने भी समर्थन नहीं ही दिखाया ,तभी तो बच्चे स्कूल से छुपकर पत्रिका में लिखना शुरू किए.धीरे ही सही बाल रचनाकारों की संख्या में लगातार वृद्धि ही है .बस बच्चों जो भी तुम सोचों,दुनिया को जैसे भी देखो .... हमें बस लिख भेजो या मेल कर दिया करो॥
बाल महोत्सव का समय है और इस बार हमने बच्चों की सांस्कृतिक गतिविधिओं को ही जगह दिया है .इसलिय यह अंक "बाल महोत्सव" विशेषांक है।....... तो मेरे नन्हे कहानीकारों,बाल कवियों,चित्रकारों आप अपनी रचना को जितना जल्दी हो सके भेज डालो .... जल्द ही हम आ रहे हैं "आईना" को नए तेवर में लेकर ...बाय-बाय

Wednesday, May 13, 2009

आईना का दूसरा अंक बाज़ार में

बच्चों के कलम से निकलनेवाली बाल पत्रिका आईना का दूसरा अंक बाज़ार में आ गया है.इस पत्रिका की खास बात यही है की यह पत्रिका विशुद्ध रूप से बाल पत्रिका है जिसमें बच्चे अपनी बातों , विचारों को बेवाक होकर लिखते हैं .यहाँ तक की ये लोग किसी खास लोगों का इंटरव्यू तक लेते हैं.इस अंक में भोजपुर के पुलिस अधीक्षक सुनील कुमार का इंटरव्यू लिए हैं।
कहानियाँ,कवितायें ,लोककथाएं, अंधविश्वास के खिलाफ खुलकर अपनी बातें रखना ही आईना को और बाल पत्रिकाओं से अलग रखता है. बच्चे इस पत्रिका में ख़ुद को हवा की तरह स्वतंत्र महसूस करते है.ऐसा लगता है जैसे उन्हें अपना संसार मिल गया है जहाँ वो अपनी भावनाओं को अभिव्क्त करने में ज़रा भी झिझक नहीं होता।
बाज़ार में लाने की कोशिश तो हुईहै देखना है की बच्चों की बातें बड़ों पर कितना प्रभावी होती है। आईना से कोई भी बच्चा जुड़ सकता है ,बस उन्हें अपनी बातें कार्टून,पेंटिंग,कहानी,न्यूज़,कविता आदि के रूप में लिख भेजना है.